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आम जनता के लिए आज से खुलेगा ट्रेड फेयर

आम जनता के लिए आज से खुलेगा ट्रेड फेयर

 आम जनता के लिए आज से खुलेगा ट्रेड फेयर 
 प्रगति मैदान में लगा 39वां अंतरराष्ट्रीय ट्रेड फेयर कल (मंगलवार) से आम लोगों के लिए खुल जाएगा। यह 27 नवंबर तक चलेगा। मेले में 25 हजार लोगों के रोजाना पहुंचने की उम्मीद है। इस बार हॉल नंबर 7 से 12A के बीच ही मेले का आयोजन होगा। ट्रेड फेयर में भारतीय संस्कृति के साथ आधुनिक व उन्नत तकनीक भी विभिन्न पवेलियनों में देखने को मिलेगी। स्टेट पवेलियनों में हैंडक्राफ्ट, हैंडलूम, सिल्क व राज्यों के परंपरागत दिलकश परिधानों के साथ ही मिथिला की पेंटिग्स, बांस के बर्तन और टेराकोटा मूर्ति शिल्प देख सकते हैं और शॉपिंग कर सकते हैं। कैसे तकनीक का इस्तेमाल कर जूट से सड़क निर्माण किया गया है यह भी जरूर देखें। 
रोजगार को बढ़ावा देने के लिए बेहद कम लागत में इत्र बनाने का रास्ता तैयार किया है। इसके लिए क्लेबेंजर और फ्रेकशीनेसन मशीनों की आवश्यकता है। कांच के मटका नुमा ये मशीने मात्र 20 से 30 हजार रु की हैं। इस तकनीक की बड़ी मशीनें 2 से 3 लाख रुपए की बताई जा रही हैं। तकनीक के जानकार अनमोल राजवंशी ने बताया कि छोटे स्तर पर काम करने के लिए बड़ी मशीनों की जरूरत नहीं है। इससे घर बैठे परफ्यूम बनाकर उसे बाजार में बेचा जा सकता है। बाजार में बिकने वाले इत्र में केमिकल मिक्स होता है, लेकिन इस तकनीक में प्योर परफ्यूम मिलता है जो ज्यादा असरदार होता है। 
हस्तशिल्प और मूर्ति कला को वर्तमान समय के अनुसार विकसित किया गया है। हॉल नं. 12 में बिहार पवेलियन में इसकी झलक देखने को मिलती है। बिहार सरकार से सम्मानित आर्टिस्ट नीतू सिन्हा मिट्टी से छठ पूजा की तस्वीर बनाते हुए बताती हैं कि टेराकोटा तकनीक से मिट्टी के बर्तन आदि बनते हैं। लेकिन अब वे इसी मिट्टी से फ्रेम में बड़ी तस्वीर तैयार करती है। कच्ची मिट्टी की तस्वीर को पकाने के बाद उसे टुकड़ों में काटा जाता है जिसे दीवार पर स्लैब के रूप में पेस्ट किया जाता है। इससे दीवार में नेचुरल आर्ट देखने को मिलती है। बिहार पवेलियन में बांस से टोकरी, बर्तन के अलावा आपको सुंदर गहने भी बनते नजर आएंगे। बांस से शिल्पकार महिलाएं कुंडल, कंगना, कड़ा, चूड़ियां और खिलाने आदि बना रही हैं। कंगना व चूड़ियों की कीमत 50 रुपये है। वैसे बांस के समान 50 रुपये से लेकर 5 हजार रु तक के हैं। इसी क्रम में टिकुली कला की पेंटिंग्स की चमक दर्शकों का ध्यान खींच रही हैं। उनकी कीमत 50 रुपये से 1200 रुपये तक है। असम की चाय दुनिया भर में मशहूर है। असम की चाय में केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। चाय को पैदा करने वाली आदि जाति सिंघु के वंशज बताते हैं कि असम की चाय में कोई मिलावट नहीं होती है। हैरिटेज टी को कई साल बांस की पोटली में बांधकर सुबह शाम पकाया जाता है। इस चाय की खासियत यह कि मधुमेह, थायरॉइड, हाई ब्लड प्रेशर और कैंसर रोग पर अंकुश लगाती है। इस चाय की कीमत 10 हजार रु प्रति किलो है। हॉल नं. 12 में मध्यप्रदेश का गोंड आदिवासी समुदाय के व्यक्ति पुरानी व दुर्लभ जड़ी-बुटियां प्रदर्शित कर रहे हैं। उनके पूर्वज जंगलों से जड़ी-बूटियां लाते थे जो लोगों के पास पहुंचती थी। उस समान की एवज में उन्हें कोई खास रकम नहीं मिलती थी। अब वे आदिवासी खुद सरकार के मंच पर इस काम को संभाले हुए हैं। उनके इनुसार, सफेद मुसली और छाला पंजा जड़ी व बूटियां काफी महंगी हो गई है। चूंकि यह विलुप्त होने की स्थिति में आ गई है। वे बताते हैं कि जंगलों में अभी ये हैं, लेकिन वहां जाने की अनुमति किसी को नहीं है। घरों में आने वाले खाना मसाला केममिकल मिक्स होते हैं। उनकी महक भी भिन्न होती जा रही है। असली महक व स्वाद की हिंग, लहसुन, अदरक, तेजपत्ता और ब्लेक राइस आदि आपको हॉल नं. 12 के मणिपुर स्टॉल में देखने को मिलती है। उन मसालों को पैदा करने के दौरान किसी भी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसी कारण वे मसाले थोड़ा महंगे जरूर है पर इतने नहीं कि जेब पर बोझ बन जाए।
 

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