केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कंप्यूटर और फोन के डाटा इंटरसेप्ट करने के लिए 10 सुरक्षा एजेंसियों को अधिकृत करने के अपने दिसंबर के आदेश को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि देश के वैध हितों में यह डाटा जांच जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट में दिए गए शपथ पत्र में केंद्र ने कहा कि एजेंसियों को कोई पूर्ण शक्तियां नहीं दी गई हैं जिससे वह लोगों के कंप्यूटर और मोबाइल फोनों की जासूसी करें। इसके उलट 20 दिसंबर की अधिसूचना में अनधिकृत डाटा सर्विलांस और जासूसी को रोक दिया है। आतंकवाद, कट्टरतावाद, साइबर अपराध और ड्रग कारटेल के खतरों को देखते खुफिया जानकारी को समय से एकत्र करना जरूरी है, जिससे इन खतरों से निपटा जा सके। शपथपत्र में कहा कि डाटा को कानूनी रूप से इंटरसेप्ट करना आवश्यक है, क्योंकि तकनीक में प्रगति होने से अनेक एडवांस टूल के जरिये डाटा इंक्रिप्टेड फार्म में स्टोर और स्थानांतरित किया जा रहा है। मंत्रालय ने कहा आईबी, सीबीआई, रॉ, एनआईए और ईडी समेत 10 एजेंसियों को इंटरसेप्ट की शक्ति देना आईटी एक्ट के तहत स्वीकार्य कदम है। इससे न सिर्फ अनधिकृत इंटरसेप्ट रुकेगा, बल्कि धारा 69 का इस्तेमाल भी सीमित होगा। यह कानूनी रूप से ही किया जा सकेगा। सरकार ने यह शपथपत्र कुछ जनहित याचिकाओं के जवाब में दिया है। इन याचिकाओं में सरकार की दिसंबर की अधिसूचना को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि सरकार ने लोगों की जासूसी करने के लिए विभिन्न एजेंसियों को अधिकृत कर दिया है। केंद्र ने कहा, डाटा इंटरसेप्ट तय कानून प्रक्रिया के अनुसार अधिकृत एजेंसियों के जरिये ही होगा साथ ही इसका ध्यान रखा जाएगा कि निजी व्यक्तियों के निजता के अधिकारों का उल्लंघन न हो। इसके लिए मानक संचालन प्रक्रिया और नियम बनाए गए हैं तथा इन नियमों के अलावा किसी तरीके से डाटा इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकेगा। वहीं इसमें यह नियम है कि इंटरसेप्टेड डाटा को हर छह माह में डिलीट किया जाएगा।