भूपेंद्र हुड्डा नहीं कर पाएंगे दुष्यंत चौटाला का मुकाबला, दीपेंद्र हुड्डा को दुष्यंत चौटाला की सियासी मजबूत होना पड़ेगा
क्या यह सही है कि उप मुख्यमंत्री बनने के बाद दुष्यंत चौटाला का सियासी रसूख भूपेंद्र हुड्डा के बराबर आ गया है?पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के पूर्व सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने 1 दिसंबर से पूरे प्रदेश के सियासी दौरे पर निकलने का ऐलान कर दिया है।भूपेंद्र हुड्डा की बजाय दीपेंद्र हुड्डा का पूरे प्रदेश के दौरे पर निकालना बड़ा सियासी मतलब रखता है। दीपेंद्र हुड्डा के ऐलान से दो बड़े सियासी संदेश निकल रहे हैं।
दुष्यंत चौटाला से पिछड़े दीपेंद्र हुड्डा
भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद दुष्यंत चौटाला दीपेंद्र हुड्डा से सियासी रसूख में कहीं आगे निकल गए हैं और दीपेंद्र हुड्डा पिछड़ गए हैं। तीन बार सांसद बनने के बावजूद दीपेंद्र हुड्डा सिर्फ पुराने रोहतक जिले में ही पकड़ बनाने में सफल हुए हैं जबकि दुष्यंत चौटाला 10 महीने में ही पूरे प्रदेश में मजबूत जनाधार खड़ा कर गए हैं।उप मुख्यमंत्री बनने से पहले दुष्यंत चौटाला भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा दोनों से ही जूनियर सियासी हैसियत रखते थे लेकिन अब हुए दीपेंद्र हुड्डा को पछाड़ते हुए वे भूपेंद्र हुड्डा की बराबरी पर आ खड़े हुए हैं।दीपेंद्र हुड्डा को यही बात खटक रही है और इसीलिए उन्होंने पुराने रोहतक के "कुएं" से निकलकर पूरे प्रदेश में अपनी सियासी पकड़ बनाने की मुहिम छेड़ने का ऐलान किया है।
2024 में दीपेंद्र का होगा दुष्यंत से मुकाबला
भूपेंद्र हुड्डा की बजाय दीपेंद्र हुड्डा का पूरे प्रदेश के दौरे पर निकालना यह इशारा कर गया है कि 2024 के विधानसभा चुनाव में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा खुद की बजाय अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को सीएम के दावेदार के रूप में पेश कर सकते हैं। उम्र के तगाजे और मौके की नजाकत ने भूपेंद्र हुड्डा को ऐसा करने के लिए मजबूर किया है।भूपेंद्र हुड्डा 73 साल की उम्र को पार कर चुके हैं और 5 साल बाद हुए 78 साल पार कर जाएंगे। उस समय भूपेंद्र हुड्डा के लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर युवा दुष्यंत चौटाला का मुकाबला करना आसान नहीं होगा। इसलिए वे समय रहते अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को दुष्यंत चौटाला के बराबर सियासी रूप से मजबूत करना चाहते हैं। इसी मजबूती को हासिल करने के लिए दीपेंद्र हुड्डा पूरे प्रदेश के सियासी दौरे पर निकल रहे हैं।
बात यह है कि प्रदेश की सियासत में दुष्यंत चौटाला समकालीन सभी नेताओं से आगे निकल गए हैं। भूपेंद्र हुड्डा आज बेशक दुष्यंत चौटाला से कुछ रुतबे में बड़े नजर आते हैं लेकिन 2024 के चुनाव को लेकर दुष्यंत चौटाला का पलड़ा उनसे भारी नजर आ रहा है।
प्रदेश की जाट सियासत में ओम प्रकाश चौटाला और भूपेंद्र हुड्डा के लिए जहां 2024 का चुनाव बड़ी उम्मीद नहीं दिखा रहा है वहीं दूसरी तरफ किरण चौधरी, बीरेंद्र सिंह, रणदीप सुरजेवाला और अभय चौटाला के मुकाबले के बाहर रहने के आसार नजर आ रहे हैं।
दुष्यंत चौटाला के सामने सिर्फ दीपेंद्र हुड्डा ही कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। वर्तमान समय में दुष्यंत चौटाला दीपेंद्र हुड्डा से काफी आगे निकल चुके हैं। दुष्यंत चौटाला प्रदेश के सभी हिस्सों में जहां अपनी पार्टी का मजबूत जनाधार स्थापित कर गए हैं वहीं दूसरी तरफ जनता में भी उनका सियासी रसूख बड़ा हो चुका है। उप मुख्यमंत्री के रूप में बढ़िया कामकाज के जरिए दुष्यंत चौटाला अपनी छवि को और भी बेहतर करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।
दुष्यंत चौटाला अभी से 2024 के सीएम पद के दावेदारों में जगह बना चुके हैं जबकि दीपेंद्र हुड्डा अभी भी पुराने रोहतक जिले में अटके हुए हैं।
अगर 2024 के चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा की शारीरिक क्षमता ने साथ नहीं निभाया तो कांग्रेस के अलावा भूपेंद्र हुड्डा के परिवार के लिए भी बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। उस बड़े खतरे से निपटने के लिए ही दीपेंद्र हुड्डा ने समय रहते खुद को रोहतक के दायरे से बाहर निकलकर पूरे प्रदेश में अपनी सियासी पकड़ बनाने में अकलमंदी समझी है।
दीपेंद्र हुड्डा का यह फैसला कांग्रेस और हुड्डा परिवार दोनों के लिए ही फायदेमंद हो सकता है। दीपेंद्र हुड्डा ने 15 साल की सियासत में रोहतक जिले से बाहर खुद को दमदार नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। अपने पिता भूपेंद्र हुड्डा के 10 साल के शासनकाल में उनके पास चमकने का भरपूर अवसर मौजूद था लेकिन उन्होंने उस गोल्डन चांस को कैश नहीं करके बड़ी गलती कर दी। दुष्यंत चौटाला का मुकाबला करना दीपेंद्र हुड्डा के लिए आसान नहीं होगा। अब देखना यही है कि दीपेंद्र हुड्डा विपक्ष में रहते हुए अपने पिता के नेटवर्क के सहारे खुद को कितनी मजबूती से बड़े नेता के रूप में खड़ा कर पाएंगे।