महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलों की उम्मीदें अब नई सरकार से
महाराष्ट्र में शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से तीन दलों की भावी सरकार के गठन से राज्य की दबावग्रस्त और धन की कमी से त्रस्त सहकारी चीनी मिलों की उम्मीदें फिर से जग गई हैं और उनकी नजरें अब सरकार की तरफ हैं। मिलें राज्य के शीर्ष सहकारी बैंक से कार्यशील पूंजी की मदद चाह रही थीं, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। इसके बिना मिलें अब तक पिराई शुरू नहीं कर पाई हैं। आमतौर पर नवम्बर के पहले सप्ताह में गन्ने की पिराई शुरू हो जाती है जिसमें राज्य की सहकारी मिलों को देर हो चुकी है। राज्य में ऐसी मिलों की काफी संख्या है। मिलों के इस वर्ग पर पिछले सत्र से किसानों का कुछ हजार करोड़ रुपए बकाया है। उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना और चीनी उत्पादक राज्य है। महाराष्ट्र के बाजार का परिदृश्य पिछले कुछेक सालों से मौसम की मार, घरेलू और वैश्विक बाजार में चीनी की अधिकता, बढ़ते बकाए और कम निर्यात आदि के कारण प्रतिकूल रहा है।
इस साल भारी बारिश की वजह से महाराष्ट्र के प्रमुख चीनी उत्पादक क्षेत्रों में बाढ़ आ गई थी, विशेष रूप से कोल्हापुर, सांगली, सातारा और पुणे में। इसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष के 11.5 लाख हैक्टेयर की तुलना में गन्ने का रकबा 33 प्रतिशत घटकर 7,76,000 हैक्टेयर रहने का अनुमान है। इसके अलावा चीनी उत्पादन भी वर्ष 2019-20 में 40 प्रतिशत घटकर 62 लाख टन का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2018-19 में एक करोड़ टन था। बाढ़ के साथ-साथ राज्य में चुनाव और सरकार के गठन में देरी की वजह से पहले ही चीनी मिलों के शुरू होने में काफी देरी हो चुकी है। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के अनुसार महाराष्ट्र में पिछले साल 20 नवम्बर से पहले करीब 149 मिलों ने परिचालन शुरू कर दिया था और 6,31,000 टन चीनी का उत्पादन किया था।
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