अयोध्या मुद्दे को उलझाए रखकर सच से मुंह फेर रहा है मुस्लिम पक्ष : विहिप-निर्मोही अखाड़ा
अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष जमीयत उलमा-ए-हिंद के पुनर्विचार याचिका दायर करने के निर्णय की विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और निर्मोही अखाड़ा ने कडी़ आलोचना की है। उन्होंने मुस्लिम पक्ष पर मुद्दे को लटकाए रखने और सच से मुंह फेरने का का आरोप लगाया है। विहिप के जॉइंट जनरल सेक्रटरी सुरेंद्र जैन ने कहा मुस्लिम पार्टियां इस केस में कभी अपनी बातों पर कायम नहीं रहीं। अयोध्या में निर्मोही आखाड़े के प्रमुख, महंत धीरेंद्र दास और राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने इसे भारत में 'सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की साजिश' बताया। दोनों ही संतों का कहना था कि मुस्लिम पक्ष ने पहले कहा था कि वह कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लेगा, और यह कि मुख्य मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने पुनर्विचार याचिका दायर करने से मना कर दिया है। विहिप का यह भी कहना था कि मुसलमानों का एक बड़ा तबका किसी पुनर्विचार याचिका के पक्ष में नहीं था। सुरेंद्र जैन के अनुसार, 'उनका यह दावा कि 99 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय पुनर्विचार याचिका के पक्ष में है, एकदम गलत है। युवा और और शिक्षित मुस्लिम ऐसे किसी कदम के पक्ष में नहीं हैं और बड़ी बारीकी से इन पर नजर रखे हुए है।' उन्होंने आगे कहा, 'मुस्लिम पक्ष अयोध्या मामले में हमेशा मुद्दे को लटकाए रहने और सच को झुठलाने की नीति अपनाता रहा है। हालांकि पुनर्विचार याचिका दायर करना उनका कानूनी हक है लेकिन इससे उनकी स्थिति को और नुकसान पहुंचेगा।'
विहिप पदाधिकारी ने कहा, 'पहले तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना की और उसके बाद कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए उकसाया।' राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट को पहली सुनवाई में ही याचिका को खारिज कर देना चाहिए। बता दें कि अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक मुस्लिम पक्षकार ने सोमवार को रिव्यू पिटिशन दाखिल की। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशद रशीदी की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला को सौंपने और मस्जिद के लिए दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने के फैसले में खामियां हैं। अदालत ने माना था कि विवादित जगह पर मस्जिद को तोड़ा जाना गलत था, फिर भी हिंदू पक्षकार को जमीन दे दी गई। पूर्ण न्याय के लिए वहीं बाबरी मस्जिद दोबारा बनाने का आदेश दिया जाना चाहिए था। याचिका दाखिल करने के बाद मीडिया से बातचीत में मौलाना सैयद अशद मदनी ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट अयोध्या पर दिए अपने फैसले को बरकरार रखता है तो जमीयत उसे मानेगी। वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा कि इस मामले में एआईएमपीएलबी 9 दिसंबर से पहले पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा।
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