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सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कागज उद्योग को मिलेगा बड़ा समर्थन - एक चौथाई बाजार पर होगा कब्जा

सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कागज उद्योग को मिलेगा बड़ा समर्थन  - एक चौथाई बाजार पर होगा कब्जा

 सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कागज उद्योग को मिलेगा बड़ा समर्थन 
- एक चौथाई बाजार पर होगा कब्जा
प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति के चलते सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रतिबंध से कागज इसके एक स्थिर विकल्प के रूप में उभर रहा है। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि 2025 तक 80,000 करोड़ रुपये के एकल इस्तेमाल प्लास्टिक के 25 प्रतिशत बाजार पर कागज उद्योग का कब्जा होगा। हाइवे इंडिया द्वारा पिछले सप्ताह आयोजित दुनिया की सबसे बड़ी कागज प्रदर्शनी पेपरेक्स- 2019 में जारी अध्ययन के अनुसार 2017-18 में भारत में हर रोज 26,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता था। इसमें से सिर्फ 60 प्रतिशत को ही रिसाइकिल किया जाता है और शेष सड़कों, कूड़ाघरों में ऐसे ही फेंक दिया जाता है। 
रिपोर्ट के अनुसार, देश का एकल इस्तेमाल प्लास्टिक उद्योग 80,000 करोड़ रुपये का है और यह और बढ़ रहा है। देश में प्लास्टिक की खपत में पैकेजिंग का हिस्सा एक तिहाई का है। छोटे से समय में 70 प्रतिशत प्लास्टिक की पैकेजिंग कचरे में तब्दील हो जाती है। रिपोर्ट कहती है जिस प्लास्टिक कचरे को जुटाया नहीं जाता है, उनसे जमीन और पानी के जीवों को खतरा होता है। इसमें कहा गया है कि एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक के कंटेनरों को समाप्त होने में एक हजार साल तक का समय लग जाता है। हाइवे इंडिया लंदन के हाइवे समूह पीएलसी की शतप्रतिशत अनुषंगी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी ओर कागज पर्यावरणनुकूल और जैविक रूप से अनुकूल होता है। इसमें कहा गया है कि यह मिथक है कि कागज उद्योग उत्पादन के लिए पेड़ों को काटता है और इसमें पानी और बिजली की भारी खपत होती है। रिपोर्ट कहती है कि कागज उद्योग जितने पेड़ काटता है उससे अधिक लगाता है। उद्योग का प्रमुख कच्चा माल 100 प्रतिशत नवीकरणीय लकड़ी और कृषि अपशिष्ट है। अध्ययन में कहा गया है कि करीब एक तिहाई नया कागज पुनर्चक्रित कागज से आता है। इतना ही अन्य कचरे मसलन लकड़ी के बुरादे आदि से आता है।

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