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जज ने कविता पढ़कर फांसी को उम्रकैद में बदल दिया

जज ने कविता पढ़कर फांसी को उम्रकैद में बदल दिया

 सुप्रीम कोर्ट ने एक बच्चे की हत्या के जुर्म में मौत की सजा पाए एक दोषी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। कोर्ट ने कहा कि वह सुधरना चाहता है। जेल के अंदर उसने जो कविताएं लिखी हैं, उससे पता चलता है कि उसे अपनी गलती का अहसास है। जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि दनेश्वर सुरेश बोरकर ने जब अपराध किया था, वह २२ साल का था। कोर्ट ने कहा कि जेल के रहने के दौरान उसने ‘समाज से जुड़ने’ का और ‘शिक्षित व्यक्ति’ बनने का प्रयास किया। जज एस अब्दुल नजीर और जज एमआर शाह भी इस बेंच का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि बोरकर पिछले १८ वर्षाें से जेल में है और उसका आचरण दिखाता है कि उसमें सुधार लाया जा सकता है। उसका पुनर्वास हो सकता है। इससे पहले बोरकर ने बंबई हाई कोर्ट के २००६ मई के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने एक नाबालिग बच्चे की हत्या के जुर्म में निचली अदालत की ओर से सुनाई गई मौत की सजा के बरकरार रखा था। दोषी के वकील ने कोर्ट में अपने तर्क में कहा था कि जेल में बोरकर का आचरण बेहद अच्छा है, उसने जेल में अपनी पढ़ाई पूरी की और एक शिक्षित इंसान बनने की कोशिश की।

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