काग्रेस-शिवसेना के गठबधन पर उठते सवाल?
संदर्भ: महाराष्ट्र में नया बदलाव
भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया है। कांग्रेस की जानी दुश्मन रही हिंदूवादी शिवसेना का महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ गठबंधन हो गया है। इस गठबंधन पर सवालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसे बेमेल गठबंधन माना जा रहा है। गठबंधन के भविष्य को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर शिवसेना कांग्रेस के साथ गठबंधन करने क्यों मजबूर हुई और इसे मजबूर किसने किया। इस मुद्दे पर चर्चा तो होना लाजिमी है।
भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठबंधन तीस साल पुराना रहा है लेकिन इतना पुराना गठबंधन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले तक तो बरकरार रहा लेकिन चुनावी नतीजों के बाद गठबंधन टूट गया। शिवसेना भाजपा का जो गठबंधन टूटा है इसके लिये शिवसेना से कहीं ज्यादा भाजपा जवाबदार है। यह विश्लेषण से साबित हो जायेगा।
तीस सालों से एक साथ रहने वाली भाजपा और शिवसेना के बीच यह तय हुआ था कि देश पर भाजपा राज करेगी और महाराष्ट्र में शिवसेना का राज होगा। यह समझौता 2014 के पहले तक कायम रहा। लेकिन भाजपा की कमान जब राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अमितशाह के हाथों में आयी तो उन्हें महाराष्ट्र में भाजपा का शिवसेना की बी टीम बने रहना रास नहीं आया। अमित शाह ने सहयोगी दलों का लाभ उठाकर भाजपा को आगे बढ़ाने और बाद में सहयोगियों की सीढ़ी को गिरा देने की रणनीति को अपनाना शुरू किया।
2014 में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव जब हुए तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना के साथ गठबंधन तोडऩे का ए्ेलान कर दिया और भाजपा के अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा भी कर दी थी। अमितशाह ने महाराष्ट्र में जो चुनावी पांसे फेंके वे कामयाबी भरे रहे। शिवसेना का वर्चस्व तोड़कर भाजपा महाराष्ट्र में 2014 में पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और शिवसेना दूसरे नंबर पर खिसक गयी। अमित शाह की रणनीति की वजह से पहली बार महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनी थी और देवेन्द्र फडऩवीस मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन बहुमत पूरा नहीं मिलने की वजह से फिर शिवसेना का समर्थन हासिल कर लिया गया था।
लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना ने गठबंधन तो किया ही और अभी 2019 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों के बीच गठबंधन हो गया। भाजपा को उम्मीद थी कि महाराष्ट्र में एक बार फिर उसकी सरकार शिवसेना की बैसाखी के सहारे बन जायेगी। लेकिन इस बार बाजी पलट गयी। लोकसभा चुनाव में अमितशाह और उद्धव ठाकरे के बीच यह तय हुआ था कि इस बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ढाई-ढाई वर्ष तक दोनों मिलकर सरकार चलायेंगे। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद भाजपा मुकर गयी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे समझौता मानने पर अड़ गये। लेकिन शिवसेना को खिझाने की सबसे पहले शुरुआत देवेन्द्र फडऩवीस ने कर दी थी और चुनौती के अंदाज में ऐलान किया वो ही मुख्यमंत्री बनेंगे और पांच साल रहेंगे। फडऩवीस के इस ऐलान के बाद ही शिवसेना भड़क गयी, लेकिन भाजपा को उम्मीद थी कि हर बार की तरह इस बार भी शिवसेना को जैसे-तैसे मना लिया जायेगा लेकिन पांसे उलटे पड़ गये। शिवसेना ने भाजपा का साथ छोडऩे का कड़ा फैसला ले लिया।
महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस तीनों के बीच नया गठबंधन हो गया। लेकिन ऐसा गठबंधन हो जायेगा इसकी उम्मीद भाजपा को कम ही रही। भाजपा ने शिवसेना को मात देने की आखरी दम तक कोशिश की। राष्ट्रवादी कांग्रेस के एक धड़े को अजीत पवार के साथ तोडऩे की जो कोशिश की वह नाकामयाब रही और ताबड़तोड़ तरीके से दूसरी बार बने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस को तीन दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन अजीत पवार को तोड़कर सरकार बनाने की भाजपा की कोशिश ने शिवसेना को और चिढ़ा दिया।
ये सही है कि शिवसेना को समर्थन देने के मामले में कांग्रेस और विशेषकर सोनिया गांधी आखरी समय तक ऊहापोह में रहे। लेकिन सोनिया गांधी को मनाने में राष्ट्रवादी कांग्रेस के मुखिया शरद पवार कामयाब हो गये। पवार ने सोनिया गांधी को शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के कांग्रेस पर किये गये अहसानों को गिनाया। उन्हें बताया गया कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने जो आपातकाल लगाया था उसका समर्थन शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने किया था। बाद में जो चुनाव हुए उसमें ठाकरे ने उम्मीदवार नहीं उतारे। राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी की उम्मीदवारी का समर्थन भी शिवसेना ने किया। ठाणे महानगर पालिका में कांग्रेस का समर्थन भी शिवसेना ने किया। इन सब एहसानों को सुनकर सोनिया गांधी शिवसेना को समर्थन देने राजी हो गयी। अब महाराष्ट्र में कांग्रेस एनसीपी और शिवसेना के बीच गठबंधन की सरकार बन ही गयी। अब सबकी नजरें इस बात पर लगी रहेंगी कि महाराष्ट्र ने बेमेल गठबंधन की सरकार का भविष्य क्या होगा।
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