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 इसरो ने लॉन्च किया पीएसएलवी-सी 48, कक्षाओं में स्थापित किए गए दस सैटेलाइट

 इसरो ने लॉन्च किया पीएसएलवी-सी 48, कक्षाओं में स्थापित किए गए दस सैटेलाइट

 इसरो ने लॉन्च किया पीएसएलवी-सी 48, कक्षाओं में स्थापित किए गए दस सैटेलाइट
 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सैटलाइट रिसैट-2बीआर1 लॉन्च कर दिया है। इस सैटलाइट को पीएसएलवी-48 रॉकेट के जरिए बुधवार को लॉन्च किया गया। सैटलाइट के साथ नौ और सैटलाइट भेजे गए हैं। रिसैट-2बीआर1 एक रेडार इमेजिंग अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटलाइट है। इसका वजन कुल 628 किलोग्राम है।
यह प्रक्षेपण इसरो के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह पीएसएलवी की 50वीं उड़ान है। श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया जाने वाले यह 75वां रॉकेट है। इसे कृषि, वन और आपदा प्रबंधन में सहायता के मकसद से तैयार किया गया है। कुल भेजे गए सैटलाइट में इनमें इजरायल, इटली, जापान का एक-एक और अमेरिका के छह उपग्रह शामिल हैं। 
इसरो ने बताया इन उपग्रहों का प्रक्षेपण न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड के साथ हुए व्यावसायिक करार के तहत किया गया। स्‍पेस एजेंसी ने बताया रिसैट-2बीआर1 मिशन की उम्र पांच वर्ष है। रिसैट-2बीआर1 से पहले 22 मई को रिसैट-2बी का सफल प्रक्षेपण किया गया था।
रिसैट-2बीआर1 के अलावा पीएसएलवी जिन 9 सैटलाइट को अपने साथ अंतरिक्ष में ले जा रहा है, उनमें से एक इजरायल का है। इसे इजरायल के हर्जलिया साइंस सेंटर और शार हनेगेव हाईस्‍कूल के स्‍टूडेंट्स ने मिलकर बनाया है। डुसीफैट-3 नाम के इस सैटलाइट का वजन महज 2.3 किलोग्राम है। यह एक एजुकेशनल सैटलाइट है जिस पर लगा कैमरा अर्थ इमेजिंग के लिए इस्‍तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा इस पर लगा एक रेडियो ट्रांसपोंडर वायु और जल प्रदूषण पर रिसर्च करने और जंगलों पर नजर रखने के काम आएगा। इसे बनाने वाले तीनों इजरायली छात्र भी लॉन्‍च साइट पर होंगे। 
रिसैट-2बीआर1 सैटेलाइट दिन और रात दोनों समय काम करेगा। ये माइक्रोवेव फ्रिक्वेंसी पर काम करने वाला सैटेलाइट है, इसलिए इसे राडार इमेजिंग सैटेलाइट कहते हैं। यह किसी भी मौसम में काम करेगा, साथ ही यह बादलों के पार भी तस्वीरें ले पाएगा लेकिन ये तस्वीरें वैसी नहीं होंगी जैसी कैमरे से आती हैं। भारतीय सेना के अलावा यह कृषि, जंगल और आपदा प्रबंधन विभागों को भी मदद करेगा।
इस सैटेलाइट से हो रही सीमाओं की निगरानी 26/11 मुंबई हमले के बाद इस रीसैट सैटेलाइट की तकनीक में बदलाव किया गया था। हमले के बाद से सैटेलाइट के जरिए सीमाओं की निगरानी की गई थी। यह सैटेलाइट आतंक विरोधी कामों में भी उपयोग में लाई जाती है।

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